तो क्या पाकिस्तान में दमन, उत्पीड़न, धर्मांतरण के खतरों के बाद भी हिन्दुओं की संख्या बहुत धीमी गति से, लेकिन बढ़ रही है? प्यू रिसर्च के कुछ आंकड़ों को सही मानें तो शायद हां।
बंटवारे के वक्त वेस्ट पाकिस्तान से हिन्दुओं और सिखों की कमोबेश पूरी आबादी भारत आ गयी थी। डॉ बीना डिकोस्टा की किताब नेशनलिज्म, जेंडर एण्ड वार क्राइम्स इन साउथ एशिया में कहती हैं कि बंटवारे के बाद 1951 में पाकिस्तान में कुल आबादी के 1.6 हिन्दू रह गये थे। जबकि ईस्ट पाकिस्तान में कुल आबादी के 22 फीसदी हिन्दू आबादी थी। ईस्ट और वेस्ट पाकिस्तान की कुल आबादी के 12.9 फीसदी थी जो दस साल में ईस्ट पाकिस्तान में तेजी से घटी और ईस्ट वेस्ट दोनों को मिलाकर 1961 तक 10.2 रह गयी।
बंटवारे के वक्त अगर वेस्ट पाकिस्तान में हिन्दुओं का सबसे बड़ा नरसंहार हुआ तो बंटवारे के बाद यह नरसंहार ईस्ट पाकिस्तान पहुंच गया जहां अभी भी 22 फीसदी बंगाली हिन्दू थे। डॉ डिकोस्टा इसका कारण बताती हैं बंगाली राष्ट्रवाद जो वेस्ट पाकिस्तान के हुक्मरानों को पसंद नहीं था। वेस्ट पाकिस्तान बंगाली राष्ट्रवाद को कुचलना चाहते थे ताकि ईस्ट पाकिस्तान को प्योर इस्लामिक राष्ट्र बनाया जा सके। और इसका जरिया उन्होंने कट्टर इस्लाम को बढ़ावा देकर किया जिसका खामियाजा आखिरकार वेस्ट पाकिस्तान को ही भुगतना पड़ा और ईस्ट पाकिस्तान बांग्लादेश बन गया।
जनरल टिक्का खान और प्रेसिडेन्ट अयूब खान ने बड़े पैमाने पर ईस्ट पाकिस्तान में कत्लेआम शुरु करवाया ताकि हिन्दुओं और बंगाली राष्ट्रवाद दोनों को कुचल दिया जाए। वेस्ट पाकिस्तान के इस आतंकवाद ने ईस्ट पाकिस्तान में हिन्दुओं की करीब आधी आबादी को या तो जान से हाथ धोना पड़ा या फिर वे शरणार्थी बनकर भारत आ गये। 1974 में बांग्लादेश के पहले जनसंख्या सर्वे में हिन्दू आबादी घटकर 13.5 प्रतिशत रह गयी थी। जो आज 2011 की जनगणना के मुताबिक 8.2 से 9.6 के बीच है।
यहां गौर करने लायक बात यह है कि अगर बंटवारे के बाद वेस्ट पाकिस्तान में जो हिन्दू आबादी बची उसमें बहुत धीमी बढ़त दिख रही है तो बांग्लादेश में यह लगातार गिर क्यों रही है? अगर वेस्ट पाकिस्तान कट्टर था तो 71 के बाद भी बांग्लादेश की हिन्दू आबादी में गिरावट क्यों दर्ज की जा रही है। उसका जवाब है शायद अमीरी और गरीबी। वेस्ट पाकिस्तान में जो हिन्दू बचे हैं उनमें दो तिहाई जातीय हिन्दू यानी दलित हैं बाकी आदिवासी। इनमें कमोबेश सारे हिन्दू सिन्ध और बलोचिस्तान में बसते हैं जहां कट्टरता का बोलबाला वैसा नहीं है जैसा पंजाब या पख्तूनवा में। शिया और बलोच बहुल इन इलाकों में आदिवासी या नीची जाति के हिन्दू शायद इसलिए बचे हुए हैं क्योंकि वे इस्लाम के लिए फिलहाल कोई खतरा नहीं है। जबकि बांग्लादेश में हिन्दुओं की बंगाली आबादी पढ़ी लिखी और व्यापारी समुदाय थी जिसे जानबूझकर निशाना बनाया गया क्योंकि इस्लाम को इनसे खतरा था।
इसलिए प्यू रिसर्च का यह आंकड़ा सही होते हुए भी कि वर्तमान पाकिस्तान में हिन्दुओं की आबादी घटने की बजाय बढ़ रही है और 2050 तक कुल आबादी का 2 फीसदी हो जाएगी, बहुत आशाजनक नहीं है। 1951 में भी हिन्दू कुल आबादी के 1.6 फीसदी थे और आज भी कुल आबादी के 1.6 फीसदी हैं। फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि अगले पैंतीस साल में वे बढ़ ही जाएंगे? प्यू रिसर्च का कहना है कि पाकिस्तान में प्रति महिला हिन्दू बच्चों की जन्मदर वही है जो भारत में मुसलमान बच्चों का है। लेकिन सवाल यह है कि जो बच्चे पैदा होते हैं क्या उन्हें सुरक्षित पलने बढ़ने का मौका मिलता है? पाकिस्तान के हालात देखकर ऐसा बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। अल्पसंख्यकों में आत्विश्वास पैदा करने, उनको मुख्यधारा का हिस्सा बनाने के लिए उसे बहुत कुछ करना है।
पाकिस्तान में हिन्दू, ईसाई और मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ जो हिन्सा हो रही है उसी के कारण धार्मिक सहिष्णुता की लिस्ट में वह सबसे निचले पायदान पर है। एक देश के तौर पर उसे अपने अतीत ही नहीं वर्तमान से भी बाहर निकलना होगा जहां कायदे आजम के सेकुलर पाकिस्तान का स्वप्न साकार हो सके।
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