Friday, August 8, 2014

इराक में फिर अमेरिका

अराबिल में अमेरिकी और इसाई नागरिकों की चिंता तो सिर्फ जरिया है लेकिन संकट में फंसे इराक में अमेरिका का असल संकट यह है कि आइसिस क्रिसिस में इराक ही हाथ से निकला जा रहा है। अल मलीकी का तीसरी दावेदारी से इंकार, इराक में बढ़ता रूस का दखल, ईसाईयों का कत्लेआम और बगदादी का अमेरिका के खिलाफ जेहाद का ऐलान ऐसे कारण बने हैं जिसके बाद अब 300 सैन्य सलाहकार भेजनेकर स्थितित पर नजर रखनेवाले अमेरिका ने इराक में हवाई कार्रवाई की शुरू कर दी है।  
 
इन संदेहों के बीच कि कट्टर इस्लामिक संगठन आइसिस भी अमेरिकी गुप्तचर एजंसी सीआईए की देन है अब अमेरिका ने उन संदेहों को गलत साबित करते हुए आइसिस के खिलाफ हवाई हमले करने की मंजूरी दे दी है। देर से ही अमेरिका ने अपनी आंखें खोल दी हैं और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने ताजा ह्वाइट हाउस संबोधन में कहा है कि वे अपनी आंख मूंदकर नहीं बैठ सकते। इसलिए अब अमेरिका 'इराक की मदद' के लिए एक बार फिर अपने लड़ाकू विमानों के जरिए इराक के आसमान में उड़ान भरने जा रहा है। लेकिन क्या सचमुच अमेरिका इराक की मदद करने जा रहा है या फिर अमेरिका अपने हाथ से फिसलते इराक को दोबारा हासिल करने जा रहा है?

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की आंख अचानक से खुली जरूर है लेकिन अनायास नहीं खुली है। 10 जून को जब आइसिस के आतंकियों ने इराक की जमीन पर कब्जा करना शुरू किया तो अमेरिका ने हस्तक्षेप करने की बजाय सिसायत करना शुरू कर दिया। इराक में रोज मीलों की दर से आगे बढ़ते इस्लामिक आतंकी रोज नये नये शहर कब्जा करते जा रहे थे और अमेरिका राजनीतिक सहमति के बिना हस्तक्षेप करने से कतरा रहा था। अमेरिका के लिए यह राजनीतिक सहमति थी इराकी प्रधानमंत्री अल मलीकी की विदाई। सीरिया में सक्रिय आतंकी अचानक से इराक की तरफ क्यों आगे बढ़ गये और शहर दर शहर कब्जा करने लगे यह सवाल तो बाद में उभरा लेकिन अल मलीकी की विदाई की शर्त रखकर अमेरिका ने आइसिस से अमेरिकी रिश्तों के शक को और पुख्ता कर दिया। इसे सिर्फ संयोग तो नहीं माना जा सकता कि सीरिया में अमेरिका और आइसिस दोनों ही अल असद की 'तानाशाही' को समाप्त कर देना चाहते हैं।

और वही आइसिस अगर अचानक सीरिया से आगे उत्तरी इराक की तरफ कूच कर जाती है तो अमेरिका मदद करने से पहले राजनीतिक समाधान की मांग रख देता है। जबकि इराक को तत्काल अमेरिका के हवाई मदद की जरूरत होती है ताकि बगदाद की तरफ तेजी से बढ़ रहे आइसिस आतंकियों को रोका जा सके। लेकिन अमेरिका अपनी जंगी बेड़ा एच डब्लू बुश फारस की खाड़ी में तो खड़ा करता है लेकिन उस पर खड़े एफ-18 लड़ाकू विमान जार्ज बुश पर ही खड़े के खड़े रह जाते हैं। इसका असर क्या होता है? इसका असर यह होता है कि आनन फानन में इराक ईरान द्वारा बंधक बनाये गये अपने पुराने लड़ाकू विमान मांग लेता है जो चार दशक पुराने थे। सुखोई एसयू-25 के इन्हीं विमानों के जरिए कभी इराक की हवाई ताकत बनती थी। जाहिर है, उसके पास उसके पायलट आज भी मौजूद हैं। आनन फानन में रूस से इसी श्रेणी के कुछ और विमान खरीदे जाते हैं और जून के पहले हफ्ते में आइसिस के कब्जे की शुरूआत के बाद जुलाई के पहले हफ्ते में इराक हवाई हमलों से जवाब देना शुरू करता है। अपने पुराने कबाड़ हो चुके रूसी एमआई सीरिज के हेलिकॉप्टरों, चार दशक पुराने टूटे फूटे सुखोई और मिग विमानों के जरिए जैसे तैसे इराक आइसिस आतंकियों पर कार्रवाई शुरू करता है लेकिन इतने से भी इराक आइसिस पर निर्णायक बढ़त हासिल करना शुरू कर देता है।

पूरे जुलाई महीने में इराक ने आइसिस आतंकियों पर जबर्दस्त कार्रवाई करी है। हजारों की तादात में आइसिस के आतंकी मारे गये हैं या घायल हुए हैं। सैकड़ों की तादात में उन्हें पकड़ा गया है। पूरे उत्तरी इराक में इराक की इस जबर्दस्त कार्रवाई में खुद अल बगदादी के गंभीर रुप से घायल होकर सीरिया की सीमा पर भाग जाने की अपुष्ट खबर भी आ रही है। इस बीच एक और बड़ी पहल करते हुए इराक के रक्षामंत्री ने जुलाई महीने में ही रूस का गुपचुप दौरा करके एक अरब डॉलर का रक्षा सौदा भी कर लिया है। इस सौदे के तहत रुस इराक को तत्काल जंगी साजो सामान मुहैया करेगा जिसमें लड़ाकू विमान से लेकर मिसाइल और मिसाइल लांचर सबकुछ शामिल है। जाहिर है, अमेरिका की तरफ से मिली निराशा के बाद इराक ने रूस की तरफ अपना रुख किया। इसी तरह मलीकी के मामले में भी इराक की सुप्रीम रिलिजियस काउंसिल और पोलिटिकल पार्टियों ने उन्हें हटाया तो नहीं लेकिन तीसरी बार दावेदारी करने से जरूर रोक लिया है। अब जबकि इराक आइसिस आतंकियों से अपने दम पर निर्णायक जंग लड़ रहा है, राजनीतिक समाधान भी निकाल रहा है और सैन्य साजो सामान के लिए अमेरिका पर निर्भरता की बजाय दुनिया के दूसरे देशों का रुख कर रहा है तो फिर अचानक से अमेरिका की आंख क्यों खुल रही है?

अमेरिका की आंख इसीलिए खुल रही है क्योंकि इराक में आइसिस का दांव (अगर वह है तो) अब अमेरिका के लिए उल्टा पड़ता जा रहा है। जार्डन के एक अखबार ने आइसिस के खलीफा के हवाले से 6 अगस्त को दावा किया है कि बगदादी न सिर्फ कुवैत पर कब्जा करने की तैयारी कर रहा है बल्कि उसने अमेरिका के खिलाफ भी जेहाद का ऐलान कर दिया है। अगर ऐसा है तो यह इस बात का संकेत है कि आइसिस अब अपनी स्वतंत्र सोच के सात आगे बढ़ रहा है और अगर कहीं अमेरिकी खुफिया एजंसियों का कोई रोल रहा भी होगा तो अब उस रोल को लादेन की तर्ज पर बगदादी ने भी मान सम्मान देने से मना कर दिया है। कुवैत पर कब्जे का ऐलान या फिर अमेरिका के खिलाफ बगदादी की धमकी के बाद अमेरिका की आंख खुलनी ही है लेकिन सवाल सिर्फ धमकी भर का भी नहीं है। अमेरिका के सामने संकट इराक में रूस की बढ़ती मौजूदगी का भी है, इराक द्वारा अपने स्तर पर निकाले जा रहे राजनीतिक समाधान का भी है। अल मलीकी ने तीसरी बार दावेदारी करने से मना कर दिया है और इराक के दो महत्वपूर्ण मुस्लिम समुदाय कुर्द और शिया आइसिस के खिलाफ लामबंद हो रहे हैं। जिस तरह से आइसिस आतंकियों ने कुर्दिश आर्मी के साथ जगह जगह मुटभेड़ शुरू की है उससे कुर्द (सुन्नी) भी आइसिस के समर्थक होने से रहे। हालांकि कुर्दिस आर्मी कमजोर पड़ी है और कई मोर्चों से वापस लौटना पड़ा है लेकिन जंग जारी है। इस बीच हर धर्मगुरू द्वारा बार बार सबसे पहले इराक को बचाने की पुकार भी इराक में आइसिस के समर्थन को कमजोर कर रही है।

जाहिर है, इराक में अमेरिकी अप्रासंगिकता के खिलाफ खड़े हो रहे इस चौतरफे संकट ने अमेरिका की एक नहीं दोनों आंखें खोलकर रख दी हैं। अराबिल के बहाने ही सही अमेरिका की यह कार्रवाई कमजोर पड़ती कुर्दिश आर्मी और शहर से भागकर पहाड़ियों पर फंसे हजारों लोगों की ही मदद नहीं करेगी बल्कि इराक में आइसिस के हौसले भी पस्त होंगे और अमेरिका के बुलंद। लेकिन एक बार फिर खतरा यह खड़ा हो सकता है कि रुस और अमेरिका इराक को अफगानिस्तान की तरह एक ऐसी युद्धभूमि में तब्दील न कर दें जिसमें अलकायदा, ओसामा और इस्लामिक लड़ाके सब लड़ रहे होते हैं लेकिन लंबे समय तक असल जंग अमेरिका और रूस के बीच ही हो रही होती है।

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