सब ठीक ही था। स्कूल तक नियाज अहमद सबसे जिगरी दोस्त भी रहा। राजबली और साथी रामलीला में ढोलक हारमोनियम भी बजाते रहे। किस दिन रामलीला में कब कहां कौन सा प्रसंग आयेगा और उस पर कौन सी धुन बजानी है यह सब राजबली ही तय करते थे। उन्हीं की धुन पर रामलला की आरती होती थी।
नियाज और राजबली मुसलमान हैं इसका हमें कभी भान भी न हुआ। वे तो भांट हैं। इतना ही जानते थे। जैसे गांव के इकलौते मोती भांट वैसे ही बाजार के राजबली। उनकी ताजिया में मेला लगता था तब हम सब भी भागकर चाट खा आते थे। गांव के मोती का ताजिया तो बनता ही था हिन्दू के घर में और गांव के चंदे से। उठता था चौरा मंदिर से और पूरा गांव जहां नीम चौरा पर जल चढ़ाने जाता था वहीं इकट्ठा होकर मोती भांट का ताजिया भी विदा करता था।
लेकिन फिर जैसे कुछ बदला। एक डॉक्टर आने लगा। थोड़ी दूर से। उसने वहीं गांव के बाजार में एक डिस्पेन्सरी खोली। डॉ शकील। उसके बोलचाल की भाषा शैली कुछ अलग थी। वह खड़ी हिन्दी ही बोलता था लेकिन उसमें भी शब्दों को थोड़ा खींचकर। कुछ दिन में उसकी डॉक्टरी जम गयी तो उसने लोगों का पाजामा ऊपर खींचना शुरू किया। अपना भी पैंट चार इंच ऊपर ही उठाकर रखता था। मुझे याद है नियाज उसका पक्का चेला हो गया था। वैसे तो लोगों के सामने वह कोई ऐसी वैसी बात नहीं करता था लेकिन कई दफा नियाज से कुछ कहते हुए सुनता था तो बड़ा अजीब लगता था। अब ठीक से याद तो नहीं कि वास्तव में वह कहता क्या था लेकिन इतना याद है कि वह नियाज सहित समूचे बाजार के भांटों को समझा रहा था कि तुम लोग इस्लाम का पालन ठीक से नहीं कर रहे हो। तुम्हें एक सच्चे मुसलमान की जिन्दगी जीना चाहिए जो ईमान का पाबंद हो। इससिए वह उन्हें दाढ़ी, टोपी, ऊंचा पाजामा और लंबे कुर्ते में लपेटकर सच्चा मुसलमान बना रहा था।
मुझे याद है लड़के जब उसको सुनते थे तो कान के साथ साथ मुंह भी खोल लेते थे जो इस बात का संकेत होता था कि तुम कुछ कह तो रहे हो, लेकिन मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। लेकिन अब तो यह सब दो दशक से भी ज्यादा पहले की बात हो गयी है। दो दशक में नियाज कहां गया, राजबली हैं कि मर गये, पता नहीं। न हमारा गांव से कोई संपर्क बचा न नियाज से। लेकिन दूरी तो उसी समय आनी शुरु हो गयी थी। कल तक जो नियाज कभी अहमद नजर नहीं आया अब उससे उतना मन न मिलता था। कुछ तो था, जो उसके अंदर बदल गया था। या फिर यह भी कह सकते हैं कि उस डॉक्टर ने बदल दिया था। अब वह कुछ खिंचा खिंचा सा रहने लगा था।
उस समय तो समझ में नहीं आता था लेकिन अब समझ में आता है कि डॉक्टर ने कहां क्या बदलाव किया था। डॉक्टर के कस्बे के ज्यादातर लोग अरब के देशों में रहते थे। डॉक्टर जो इस्लाम हमारे बाजार में ले आया था, असल में वह इस्लाम उसके घर में सऊदी अरब से आया था। उसने हमारी माटी के इस्लाम में सऊदी अरब की रेत भर दी जिसका आखिरी नतीजा क्या हुआ, यह कभी घर जाऊंगा तभी देख पाऊंगा।
लेकिन एक बात तो साफ दिख रही है कि मेरे गांव में कल तक जो समाज का इस्लाम था उसकी जगह सऊदी अरब का इस्लाम आ गया है। समकालीन भारत को देखें तो साफ दिखता है कि मेरे गांव में ही नहीं समकालीन भारत में हर जगह परंपरागत मुसलमानों के साथ इस्लाम के नाम पर छेड़छाड़ हुई है। यह छेड़छाड़ करनेवाले लोग कुछ तो ऐसा कर रहे हैं जो शायद उन्हें नहीं करना चाहिए।
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