Monday, May 23, 2016

भारत के साथ ईरान, परेशान पाकिस्तान

रान वह पहला मुल्क था जिसने पाकिस्तान बनने के बाद सबसे पहले मान्यता दी थी। लेकिन बनते बनते पाकिस्तान पहले एक मुस्लिम मुल्क बना फिर सुन्नी मुस्लिम मुल्क बन गया जिसमें कायदे आजम जिन्ना की जमात शिया मुसलमानों को काफिर घोषित कर दिया गया। कहने के लिए इस्लामाबाद पाकिस्तान की राजधानी है लेकिन हकीकत में पाकिस्तान में पांच राजधानियां हैं। लाहौर, कराची, पेशावर और क्वेटा। इन चार के बाद के बाद पांचवी राजधानी है इस्लामाबाद।

जाहिर है, सबके अपने निजाम और मंसूबे हैं। इनमें लाहौर का मंसूबा सबसे मुखर है। लाहौर में बैठे मौलवी, जनरल, कमांडर और जाट सियासतदान पाकिस्तान को अघोषित रूप से एक सुन्नी मुल्क घोषित कर चुके हैं। इसलिए हिन्दुओं, सिखों के खात्मे के बाद पाकिस्तान के नये अल्पसंख्यक शिया, अहमदिया और मोहाजिर हमेशा उनके निशाने पर होते हैं। जिसका असर ईरान के साथ रिश्तों पर अब साफ दिखाई देने लगा है।

हाल में ही कथित रूप से गिरफ्तार रॉ एजेन्ट कुलभूषण याधव की गिरफ्तारी को जिस तरह से ईरान ने खारिज किया और पूरे मामले को प्रोपेगेण्डा करार दिया उससे पाकिस्तान के सुन्नी हुक्मरान काफी नाराज हुए। पाकिस्तान के टीवी चैनलों पर खुलकर ईरान की निंदा की गयी और ईरान के ही बहाने शिया मुसलमानों को भी मुल्क का गैर वफादार वाशिंदा बताया गया। जाहिर है, यह पाकिस्तान नहीं बल्कि सुन्नी इस्लाम बोल रहा था। इन लोगों ने यह भी याद कराया कि यमन में सऊदी अरब के कहने के बाद भी हऊदियों के खिलाफ पाकिस्तान जंग में शामिल नहीं हुआ लेकिन ईरान इसका बदला यह दे रहा है कि वह पाकिस्तान के खिलाफ होनेवाली गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है।

असल में ईरान और पाकिस्तान का संबंध इतना भी नीचे नहीं गिरा है जितना टीवी पर बैठे सनकी 'विचारक बोलते रहते हैं लेकिन नीचे की तरफ बहुत तेजी से जा रहा है। उसके कुछ बड़े कारण हैं। पाकिस्तान में शिया मुसलमानों के साथ पाकिस्तानी हुक्मरानों का व्यवहार, बलोचिस्तान में चीन की मौजूदगी से बननेवाला ग्वादर बंदरगाह, पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में आतंकवाद को समर्थन और पाकिस्तान का सऊदी अरब की तरफ झुकाव। शिया मुसलमानों के साथ बीते कुछ सालों में पाकिस्तान के हुक्मरान बहुत सख्त हुए हैं। खासकर नवाज शरीफ की सरकार आने के बाद सेना के रेन्जर्स लगातार कराची में शिया और मोहाजिर के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं। पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के कुछ बड़े नेताओं की गिरफ्तारियां भी हुई हैं। मोहाजिरों की तरह ही अब शियाओं पर आरोप लगाया जाता है कि वे भारतीय खुफिया एजंसी रॉ के एजेन्ट के बतौर काम कर रहे हैं। हालात इतने बिगड़ गये हैं कि खुद जरदारी को आगे आकर कहना पड़ा कि "जंग लड़ना हम भी जानते हैं। हमारे ऊपर इस तरह के आरोप लगाकर हमें देशद्रोही साबित करना बंद करें।"

लेकिन इससे भी बड़ा एक मसला बन गया है ग्वादर में चीन का बंदरगाह। बलोचिस्तान में चीन की मौजूदगी से सिर्फ ईरान ही नहीं बल्कि पूरा अरब समुदाय खफा है क्योंकि इसका सीधा असर अरब देशों के व्यापार पर पड़ने वाला है। यूएई और ईरान नहीं चाहते कि अरब सागर में चीन आकर खड़ा हो जाए लेकिन पाकिस्तान किसी भी कीमत पर इस परियोजना को पूरा कराना चाहता है। ग्वादर में पोर्ट के अलावा चीन ग्वादर से काशगर तक एक सड़क बना रहा है ताकि वह ग्वादर पोर्ट से चीन को सीधे जोड़ सके। चीन की योजना न सिर्फ पोर्ट बनाने की है बल्कि चीनी सेना का नौसेनिक अड्डा भी बनाया जाएगा। जाहिर है इस्लामिक मुल्कों को साम्यवादी चीन की ये हरकतें भला क्योंकर बर्दाश्त होंगी। वे पाकिस्तान को रोक नहीं सकते लेकिन पाकिस्तान से खुद को अलग तो कर ही सकते हैं। और यही वे कर रहे हैं।

पाकिस्तान से ईरान की नाराजगी की एक और वजह अफगानिस्तान में पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद का समर्थन है। ईरान सिर्फ पाकिस्तान का ही पड़ोसी नहीं है बल्कि वह अफगानिस्तान का भी पड़ोसी है और अगर अफगानिस्तान में सुन्नी आतंकवाद बढ़ता है तो इसका सीधा असर ईरान पर पड़ता है। हेरात में तालिबान की मौजूदगी से जितना खतरा अफगानिस्तान को है उतना ही खतरा ईरानको है। ईरान इस खित्ते में भारत और अफगानिस्तान को पाकिस्तान के मुकाबले ज्यादा अहमियत दे रहा है। चाबहार पोर्ट इसी अहमियत का नतीजा है क्योंकि इससे सिर्फ ईरान ही नहीं बल्कि भारत और अफगानिस्तान को भी व्यावसायिक फायदा पहुंचेगा। यह बात पाकिस्तान के सुन्नी हुक्मरानों को कहीं से बर्दाश्त नहीं है।

लेकिन पाकिस्तान की इन हरकतों का फायदा भारत को मिल रहा है। अगर पाकिस्तान ने जीटी रोड के जरिए भारत को अफगानिस्तान पहुंचने का रास्ता दे दिया होता तो शायद चाबहार पोर्ट को लेकर भारत इतना बड़ा निवेश करने के लिए तैयार न होता। भारत और अफगानिस्तान दोनों चाहते थे कि बाघा बार्डर खुल जाए ताकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत के बीच व्यापारिक आवाजाही खुल सके। लेकिन पाकिस्तान की यह अफगान भारत विरोधी नीति भारत के हित में गयी और उसकी पहुंच वाया ईरान अफगानिस्तान तक हो गयी। इसमें अफगानिस्तान के साथ साथ ईरान और यूएई से भी रिश्ते बेहतर करने में भारत को मदद मिल रही है। हालांकि भारत और ईरान के रिश्ते ऐतिहासिक हैं लेकिन पाकिस्तान की नीतियों ने उसमें नया जोश भर दिया है।

चाबहार में बंदरगाह बनने से भारत न सिर्फ ईरान बल्कि अफगानिस्तान और दूसरे सोवियत मुल्कों तक अपनी पहुंच कायम कर सकेगा। रूस और यूरोप के लिए भी एक दरवाजा खुलेगा। लेकिन यह सब इतना आसान भी नहीं होगा। ईरान से अफगानिस्तान के रास्ते में तालिबान बैठा है जिसका इस्तेमाल पाकिस्तान कर सकता है। अगर अफगान तालिबान इस व्यावसायिक गलियारे का हिस्सा बनते हैं तो शायद वे रुकावट न पैदा करें लेकिन मुल्ला मंसूर के मरने के बाद तालिबान की कमान किसके हाथ में जाती है, यह उस पर निर्भर करेगा। 

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